प्रयोगशाला में बनाया जा रहा है मानव मस्तिष्क!
अर्जुन सामरिया :सभी लोगो को मेरा प्यार भरा नमस्कार। मेरी पिछली दोनों पोस्टो को अत्याधिक पसंद करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार। आज की पोस्ट में आपको जानकारी दूंगा की आज के दोर में विज्ञान ने अत्यधिक तरकी कर लि है और धीरे विज्ञान का शेत्र बढ़ता जा रहा है हमारे बड़े बुज़ुर्ग हमेशा ये बात कहते हैं कि मानव चाहे जितनी प्रगति कर ले लेकिन वो ईश्वर नहीं बन सकता। यानि जो चीज़ें प्रकृति ने अपने हाथ में रखी हैं उनमें किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। ना ही वैसी चीज़ें वो पैदा कर सकता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है मानव का जन्म। यानि दुनिया में ऐसी कोई ताक़त नहीं जो मानव को पैदा कर सके या मानव शरीर के किसी भी हिस्से को वो अलग से बना सके।
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अंतर केवल इतना है कि मां के पेट में मस्तिष्क का विकास खून की आपूर्ती से होता है। मां जो पोषक तत्व लेती है वही बच्चे को मिलते हैं। वहीं, इस प्रयोगशाला में जिस मस्तिष्क को बनाया जा रहा है, उसे ज़रूरी चीज़ें दूसरी शक़्ल में मुहैया कराई जा रही हैं। इस बात का विशेष ध्यान जा रहा है कि परखनली में उपज रहे मस्तिष्क को इन्फेक्शन न हो जाए। इसीलिए जिस माहौल में विकसित होते नन्हे मस्तिष्क रखे जाते हैं, उस पर ख़ास निगरानी होती है। जिस चीज़ में इन नन्हे मस्तिष्कों को रखा जाता है, पहले उसे अल्कोहल से साफ़ किया जाता है, ताकि कोई इन्फेक्शन न हो।अगर आप प्रयोगशाला में तैयार किए जा रहे मस्तिष्क को देखेंगें तो हो सकता है ये आपको उतने आकर्षक ना लगें। क्योंकि अभी वो पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं। आप देखेंगे कि हल्के पीले और गुलाबी रंग के लिक्विड में पानी के बुलबुले जैसे कोई चीज़ तैर रही है। लेकिन ये बिल्कुल ऐसे ही विकसित हो रहा है जैसे किसी भी मानव का मस्तिष्क मां के गर्भ में विकसित होता है।
जिस तरह मानव के मस्तिष्क के अलग अलग हिस्से होते हैं, उसी तरह प्रयोगशाला में विकसित हो रहे इस मस्तिष्क के भी कई हिस्से हैं। जैसे इसमें जो सुरमई हिस्सा है वो न्यूरॉन्स से बना है। और जहां आपको थोड़े मोटे टिशू नज़र आंगे वहां उसकी एक छोटी सी दुम विकसित हो रही है। इसका सीधा ताल्लुक़ रीढ़ की हड्डी से है। दरअसल मानव के मस्तिष्क में ये वो हिस्सा होता है जहां भाषा को समझने की विशेषता होती है। और सोचने की प्रक्रिया मस्तिष्क के इसी हिस्से में होती है।
दूसरा हिस्सा है हिप्पोकैंपस। ये मस्तिष्क का वो हिस्सा है जो स्मृति और भावनाओं को नियंत्रण करता है। ये सभी हिस्से प्रयोगशाला में विकसित हो रहे इस मस्तिष्क में भी हैं। पूरी तरह से तैयार होने पर ये बिल्कुल ऐसे ही लगेगा जैसे एक नौ महीने के बच्चे का मस्तिष्क लगता है।
मानव मस्तिष्कों की ये खेती कैसे की जा रही है?प्रश्न ये है कि आख़िर मानव मस्तिष्कों की ये खेती कैसे की जा रही है? विशेषज्ञो का कहना है कि प्रयोगशाला में मस्तिष्क बनाना कोई इतना कठिन कार्य नहीं, जितना देखने, सुनने में लगता है।
सबसे पहले उसके लिए कुछ कोशिकाओं की आवश्यकता है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में इन मस्तिष्कों को तैयार करने वाली टीम की प्रमुख हैं मैडेलीन लैंकेस्टर।लैंकेस्टर का कहना है इस काम के लिए नाक, जिगर, पैर के नाखून की कोशिकाएं ली जा सकती हैं। हालांकि उनमें से स्टेम कोशिकाओं को अलग करना होगा। क्योंकि इन्हीं से मानव के बदन के बाक़ी अंग विकसित किए जा सकते हैं।
आप प्रयोगशाला में परखनली में पल रहे मस्तिष्कों को देखेंगे तो आपको एक कोमा के साइज़ का सफ़ेद डॉट नज़र आएगा।
ये बिल्कुल ऐसा ही है जैसा एक भ्रूण का मस्तिष्क होता है। आपने जिस स्टेम कोशिकाओं का इस्तेमाल मस्तिष्क विकसित करने में किया है। वो कुछ दिनों तक पोषक तत्व दिए जाने पर छोटी गेंदों जैसे दिखने लगते हैं। इन्हीं के बीच मस्तिष्क कोशिका या वो कोशिकाएं होती हैं जो आगे चलकर मस्तिष्क के तौर पर विकसित होंगी।
अगला पड़ाव होगा कि बाक़ी कोशिकाओं को ख़त्म करके, सिर्फ़ मस्तिष्क बनाने वाली कोशिकाओं को बचाया जाए। इसके लिए वैज्ञानिक इस गेंद जैसी चीज़ को खाना-पीना देना बंद कर देते हैं। इससे ज़्यादातर कोशिकाएं मर जाती हैं। मगर जिन कोशिकाओं से मस्तिष्क बनना होता है, उनमें संकट झेलने की शक्ति अधिक होती है। इसलिए वो बच जाती हैं। फिर इन्हें अलग करके दूसरी डिश में रखा जाता हैप्रोफेसर मैडलीन लैंकेस्टर कहती हैं इन शिशु मस्तिष्क को विकसित करने वाली टीम एक फ़िक्रमंद माता पिता की तरह ही इनकी देखभाल करती है। जब एक ख़ास स्तर तक ये ब्रेन कोशिकाओं विकसित हो जाते हैं तो उन्हें एक जेली जैसे द्रव में डाल दिया जाता है। जो इस शिशु मस्तिष्क के चारों तरफ़ सुरक्षा घेरा बना लेती है। इसके बाद इस मस्तिष्क को ज़रूरी पोषक चीज़ें दी जाती हैं। क़रीब तीन महीने में ये शिशु मस्तिष्क तैयार हो जाते हैं। तीन महीनों में ये मस्तिष्क करीब चार मिलीमीटर को हो जाता है और इसमें क़रीब बीस लाख तंत्रिकाएं होती हैं। आम तौर पर एक चूहे के मस्तिष्क में इतने ही न्यूरॉन होते हैं।
वैज्ञानिकों का मक़सद अब प्रयोगशाला में बड़े आकार का मस्तिष्क विकसित करना है। जिससे इन मस्तिष्कों को प्रयोगशाला में उसी तरह काट-पीटकर समझा जा सके, जैसे वैज्ञानिक चूहों के मस्तिष्क के साथ करते हैं।